धीमी गति, कांपता बदन
बुझी आँखें, गुमशुदा स्वपन।

ऐसे में कोई तो आए
पलभर साथ का एहसास दे जाए ।

हम भी भागा करते थे कभी
न जाने कब ज़माने की रफ्तार बढी
हम ढूंढते रहे,  कारवां आगे बढ़ गया ।

कम्बख्त जिन्दगी भी अजीब है
जिस भीङ के लिए जिए
आज उसी भीड़ मे अकेले रह गए ।

अंत तो कभी का हो गया
अब तो गणित में घटना बाकी है ।

You might Like

माँ

रब ने साँचा एक मन से गढ़ा,प्रेम और ममता से उसको मढ़ा ।कह दिया कि तुम्हें संसार सजाना है,पर यह रह गया कि रिश्ता ख़ुद

Read More »

Recent Posts

समय का पहिया चलता है

बसंत के इस मौसम में चारों ओर रंग बिखरे हुए हैं। घर की बालकनी से बाहर देखो तो हर ओर बसंत की छाप झलकती हैं।

Read More »
No more posts to show