धीमी गति, कांपता बदन
बुझी आँखें, गुमशुदा स्वपन।
ऐसे में कोई तो आए
पलभर साथ का एहसास दे जाए ।
हम भी भागा करते थे कभी
न जाने कब ज़माने की रफ्तार बढी
हम ढूंढते रहे, कारवां आगे बढ़ गया ।
कम्बख्त जिन्दगी भी अजीब है
जिस भीङ के लिए जिए
आज उसी भीड़ मे अकेले रह गए ।
अंत तो कभी का हो गया
अब तो गणित में घटना बाकी है ।