ढलते जीवन की लाचारी

पूरा जीवन भाग दौड़ में निकालने क बाद वृद्धावस्था का थमाव वैसे ही अजीब लगता है जैसे गर्मी में बिजली चले जाने से कूलर बंद होने से हुआ सन्नाटा।  एक और जीवन भर हम सुकून के दो पल ढूंढते रहते है पर अंत तक आदत ऐसी हो जाती है की खालीपन खटकता है। एकल परिवार योजना जो आज के जीवन की सच्चाई है उससे यह और बढ़ गया है। व्यवसाइक परिवेश से अलगाव के बाद यदि किसी विकल्प से समय को न भरा जाए तो जीवन लम्बा एवं नीरस लगता है। ऐसे में किसी कलात्मक रूचि में समय लगाना एक अच्छा उपाय है , मित्रों का साथ भी मदद करता है।

अपने आसपास वृद्धावस्था के संघर्ष को कुछ ऐसा पाया मैंने।
 

धीमी गति , कांपता बदन
बुझी आँखें , गुमशुदा स्वपन।

ऐसे में कोई तो आये
पलभर साथ का एहसास दे  जाए।

हम भी भागा करते थे कभी
न जाने कब ज़माने की रफ़्तार बढ़ गई
हम ढूंढते रह गए , कारवां आगे निकल गया।

कम्भख्त जिन्दगी भी अजीब है
जिस भीड़ के लिए जीए
आज उसी भीड़ में अकेले हो गए।

अंत तो कभी का हो गया
बस अब गणित में घटना बाकी है। 

Pratiksha

Learner for life, from life

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