इंसान भी गजब एंटरटेनमेंट है
हर एक ने अपनी गढ़ी हुई एक सल्तनत है
हर किसी को मैं की भयंकर बिमारी है
कुछ को तो मालूम नहीं की अहम् ने उनकी क्या दशा कर डाली है

कोई सुंदरता पर इतराया है,
तो किसी को अपने ज्ञान का मोल भाया है
कुछ सबको खरीदने का दम भरते,
कुछ ने न जाने क्या क्या बेच खाया है

पहले जो आये उनका कोई निशाँ नहीं
खुद की क्या उम्र है इसका कोई पता नहीं
पर आज की तारीख में मैं ही एक ज्ञानी
खुद के एक गुण पर बनता है अभिमानी

भटकते हुए इतना हार गया है
किधर जाने को निकला यही भूल गया है
बाहर में इतना खोया है खुद के भीतर का सब सोया है
कुछ हम खुद को भी टटोल लें
अपने अंदर छिपे तंत्र से खुद को जोड़ लें
गुरूर अपनी प्रकृति पर जताओ
विधाता ने जो मानव को सबसे ऊपर रखा उसका कुछ मान कर दिखाओ

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