लोग नाराज़ है,कुछ कोसते भी है
क्यों शहर में धुआं सा है ।
जैसे खुद को इस शहर ने ही जलाया हो,
पूछते सब है कैसा यह शहर है,
जहां सब धुंधला सा है ॥
शहर मेरा आज कुछ उलझा सा है,
कहाँ मैं खो गया, कैसे हाल यह मेरा हो गया ।
मैंने कब खुद को ऐसा चाहा था ,
बस बढ़ते कदमों का हाथ मैंने थामा था ॥
कसूर अपना शहर ढून्ढ रहा,
पर कसूरवार लगता कहीं गहरे सो रहे ।
रूआंशी झलक हम दोनों की है ,
अपने शहर को धुंधला देख मरती आत्मा मेरी भी है ॥
शहर में कुछ धुआं सा है