ढलते जीवन की लाचारी

धीमी गति, कांपता बदनबुझी आँखें, गुमशुदा स्वपन। ऐसे में कोई तो आएपलभर साथ का एहसास दे जाए । हम भी भागा करते थे कभीन जाने कब ज़माने की रफ्तार बढीहम ढूंढते रहे,  कारवां आगे बढ़ गया । कम्बख्त जिन्दगी भी अजीब हैजिस भीङ के लिए…

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  • Post category:Poems

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