हरित धरा, पावन पवन
सुखद प्राणी, अविरल जल
परमात्मा ने सौंपा यह सुन्दर उपहार
मानव देखे जिसको बारम्बार

चला मनुष्य खोजने नए विचार
हर दिन ढूंढे नए अविष्कार
बनते गए नए उपकरण
गति को लगने लगे थे पंख

अपनी हर सफलता में
प्रकृति को उसने कुचला
साथी न बन मालिक का चौला पहना

कालिमा हर और थी छाई
दूषित हुई जीवन की हर इकाई

अचानक रूक गई तेज़ गति
भौचक्के डरकर बैठ गए सभी
डर जो न देखा न सोचा
किसी ने मानो नींद से उसको खींचा

प्रकृति ने ठहाका लगाया
एक ही झटके में तू घबराया
संतुलन जीवन का आधार है
मध्य में रहना ही एकमात्र व्यवहार है

You might Like

माँ

रब ने साँचा एक मन से गढ़ा,प्रेम और ममता से उसको मढ़ा ।कह दिया कि तुम्हें संसार सजाना है,पर यह रह गया कि रिश्ता ख़ुद

Read More »

Recent Posts

समय का पहिया चलता है

बसंत के इस मौसम में चारों ओर रंग बिखरे हुए हैं। घर की बालकनी से बाहर देखो तो हर ओर बसंत की छाप झलकती हैं।

Read More »
No more posts to show

This Post Has One Comment

  1. Niti

    Very nice ?

Leave a Reply