आज फिर तिरंगा हवा में लहराएगा
देख उसे हर दिल आज़ादी का अहसास पायेगा

गुलामी की बेड़ियों से हमें आज़ाद करवा गए
अनगिनत चेहरे देश के भविष्य पर मिट गए

पर इस आज़ाद हवा को अभी भी कुछ जकड़ रहा है
कृत्रिम बेड़ियों का जाल हमें फांस रहा है

विविधता है हमारी पहचान
फिर अंतर क्यों हमको बाँट रहा है
एकजुट थे जो आज़ादी की लड़ाई में
तो स्वयं के तंत्र में उन्हें क्या बाँट रहा है

क्यों किसी के इशारों पर हम चल रहे है
बिना सोचे घर गलियों को फूँक रहे है
अहिंसा थी परतंत्रता में सबसे बड़ा नारा
तो स्वतंत्रता में हिंसा क्यों बनी सहारा

आज तिरंगा लहराकर स्वतंत्रता को दर्शाएगा
पर मानसिक कुंठता से आगे बढ़कर ही राष्ट्र उसे जी पायेगा

खुद से आगे बढ़कर सोच पाए हम
स्व के तंत्र को सही में जान पाए हम
वही सच में स्वतन्त्र हिंदुस्तान कहलायेगा

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