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कैसी यह अंजीर

तश्तरी में रखी वह मुस्कुरा रही थी,थोड़ा शर्मा रही थी,थोड़ा मुझे चिढ़ा रही थी । मन में ग़ज़ब व्याधि थी,कैसे पूरा यह काम हो,बड़ी ही

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हाले दिल लिख दिया करो

कहने सुनने में वो बात कहाँ ,तुम हाले दिल लिख दिया करो । जो कहा सुना, वो गुम हो जाएगा ,लिखा हुआ मुसलसल पढ़ा जाएगा

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समय का पहिया चलता है

बसंत के इस मौसम में चारों ओर रंग बिखरे हुए हैं। घर की बालकनी से बाहर देखो तो हर ओर बसंत की छाप झलकती हैं।

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