लोग नाराज़ है,कुछ कोसते भी है
क्यों शहर में धुआं सा है ।
जैसे खुद को इस शहर ने ही जलाया हो,
पूछते सब है कैसा यह शहर है,
जहां सब धुंधला सा है ॥

शहर मेरा आज कुछ उलझा सा है,
कहाँ मैं खो गया, कैसे हाल यह मेरा हो गया ।
मैंने कब खुद को ऐसा चाहा था ,
बस बढ़ते कदमों का हाथ मैंने थामा था ॥

कसूर अपना शहर ढून्ढ रहा,
पर कसूरवार लगता कहीं गहरे सो रहे ।
रूआंशी झलक हम दोनों की है ,
अपने शहर को धुंधला देख मरती आत्मा मेरी भी है ॥

शहर में कुछ धुआं सा है

You might Like

आज़ादी

आज फिर तिरंगा हवा में लहराएगादेख उसे हर दिल आज़ादी का अहसास पायेगा गुलामी की बेड़ियों से हमें आज़ाद करवा गएअनगिनत चेहरे देश के भविष्य

Read More »

माँ

रब ने साँचा एक मन से गढ़ा,प्रेम और ममता से उसको मढ़ा ।कह दिया कि तुम्हें संसार सजाना है,पर यह रह गया कि रिश्ता ख़ुद

Read More »

Recent Posts

कैसी यह अंजीर

तश्तरी में रखी वह मुस्कुरा रही थी,थोड़ा शर्मा रही थी,थोड़ा मुझे चिढ़ा रही थी । मन में ग़ज़ब व्याधि थी,कैसे पूरा यह काम हो,बड़ी ही

Read More »

हाले दिल लिख दिया करो

कहने सुनने में वो बात कहाँ ,तुम हाले दिल लिख दिया करो । जो कहा सुना, वो गुम हो जाएगा ,लिखा हुआ मुसलसल पढ़ा जाएगा

Read More »

समय का पहिया चलता है

बसंत के इस मौसम में चारों ओर रंग बिखरे हुए हैं। घर की बालकनी से बाहर देखो तो हर ओर बसंत की छाप झलकती हैं।

Read More »
No more posts to show

Leave a Reply