तश्तरी में रखी वह मुस्कुरा रही थी,
थोड़ा शर्मा रही थी,
थोड़ा मुझे चिढ़ा रही थी ।
मन में ग़ज़ब व्याधि थी,
कैसे पूरा यह काम हो,
बड़ी ही भरी दुविधा थी ।
पूरा ख़त्म करना है,
कानों में यह शब्द गूँज पड़े,
जाते जाते दी गई चेतावनी,
अचानक जीवंत हो उठी ।
क्या ग़ज़ब समस्या है,
स्वाद भी एक परीक्षा है,
क्या ही हो जाता जो,
हम भी सब कुछ खा पाते ।
ध्यान फिर से प्लेट पर गया,
दिल को मज़बूत कर हाथ बढ़ाया,
आँख मीच कर, अंजीर को मुंह में दबाया ।
पुनः आसमान की ओर देखा,
क्या सोच कर आपने स्वाद का टंटा बनाया ।