समय

समय की भी अजब है गाथा
कहने को यह कभी रूका नहीं
कभी रूक गया तो सहन हुआ नहीं

प्रतीक्षा का हर पल पहाड़ सा लम्बा हो जाए
साथ बिताए साल भी पलक झपकते गुजर जाए

सुख के आंचल मे यह अविरल बहता जाए
दुख के कोने मे एक एक पल काटा न जाए

कहीं बीता हुआ पल मुस्कान बिखराए
कहीं वही पल आँखें नम कर जाए

आने वाला पल सपने अनेक दिखलाए
और कभी वही आँखों की नींद उङाए

समय कहता मैं नहीं हूँ किसी का दोषी
मैं तो निस्वार्थ बना हूँ सभी का साक्षी

Pratiksha

Learner for life, from life

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