बिन बुलाए बिन चाहे ग़ुस्सा आ ही जाता है

जब कोई ना कहे मनचाही बातें,
जब ना मिले मनचाहा स्वाद,
ग़ुस्सा आ ही जाता है

सड़क पर हो जाए जो कुछ देरी,
इंटरनेट स्पीड में जो घूम जाए फेरी,
ग़ुस्सा आ ही जाता है

बादशाहत की चाह को कोई कदरदान न मिले
जब ज्ञान के अहम को कोई कुछ सीख दे
ग़ुस्सा आ ही जाता है

पर इस ग़ुस्से के आने और जाने में ,
बहुत कुछ खो देते है हम

खो देते है कुछ पल जो हसीन हो सकते थे,
खो देते है कुछ रिश्ते जो सहेजे जाने थे

इसके बिगाड़े को सुधारना मुमकिन नहीं
बेहतर है इसके आने की आहट से ही सचेत जाए हम
यह हमें चलाए उससे पहले इसी को चलता करें हम

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