आज फिर पापा से बहस हो गई, वजह कुछ खास नहीं थी
एक ओर जीवन का मझा हुआ खिलाड़ी था
दूसरी ओर मेरे अंदर का नया जोश था
जीवन के खेल का मैदान, उसको निभाने की ही बहस थी

ऐसा ही रिश्ता होता है पिता का ,जीवन भर वह आपको नापता है
दुनिया में आपकी चमक देख ,दिल में बहुत हर्षाता है

दुनिया से नज़र बचा कर हम अपनी गलती ढक लेते है
पर पिता की आँखों के सामने सब सच बोल देते है

मुझसे आगे मेरी संतान जाए, यही हर पिता चाहे
पर जब संतान खुद में ही खो जाए, उसे आवाज भी न लगा पाए

जीवन भर मेरी ढाल बने रहे जो पापा, मेरी तकलीफ ने उन आँखों को नम पाया है
कठोर कहे जाने वाले दिल में ममता का बवंडर उठता मैंने देखा है

वो बहुत कुछ कभी न कह पाएंगे, मैं भी शायद सब उन्हें ना बोल पाऊं
पर दुनिया की भीड़ में वो मेरा और मैं उनका सहारा बस बन जाऊं

You might Like

आज़ादी

आज फिर तिरंगा हवा में लहराएगादेख उसे हर दिल आज़ादी का अहसास पायेगा गुलामी की बेड़ियों से हमें आज़ाद करवा गएअनगिनत चेहरे देश के भविष्य

Read More »

माँ

रब ने साँचा एक मन से गढ़ा,प्रेम और ममता से उसको मढ़ा ।कह दिया कि तुम्हें संसार सजाना है,पर यह रह गया कि रिश्ता ख़ुद

Read More »

Recent Posts

कैसी यह अंजीर

तश्तरी में रखी वह मुस्कुरा रही थी,थोड़ा शर्मा रही थी,थोड़ा मुझे चिढ़ा रही थी । मन में ग़ज़ब व्याधि थी,कैसे पूरा यह काम हो,बड़ी ही

Read More »

हाले दिल लिख दिया करो

कहने सुनने में वो बात कहाँ ,तुम हाले दिल लिख दिया करो । जो कहा सुना, वो गुम हो जाएगा ,लिखा हुआ मुसलसल पढ़ा जाएगा

Read More »

समय का पहिया चलता है

बसंत के इस मौसम में चारों ओर रंग बिखरे हुए हैं। घर की बालकनी से बाहर देखो तो हर ओर बसंत की छाप झलकती हैं।

Read More »
No more posts to show

This Post Has 3 Comments

Leave a Reply