रब ने साँचा एक मन से गढ़ा,
प्रेम और ममता से उसको मढ़ा ।
कह दिया कि तुम्हें संसार सजाना है,
पर यह रह गया कि रिश्ता ख़ुद से भी निभाना है ।।

ऐ माँ ! सबके खाने की चिंता में,
तू ख़ुद खाना ना भूला कर ।
सबके स्वाद के साथ,
अपने मन का भी कुछ पकाया कर ।।

ऐ माँ ! कुछ चीज़ें रह भी जाये,
तो इतनी बड़ी बात नहीं ।
किसी की भी चाहत,
तेरे सुकून से बढ़के नहीं ।।

ऐ माँ ! अपनी चिंता न छिपाया कर,
कान खींचकर मुझे अपना गम सुनाया कर ।
आगे बढ़ने को मुझे आजाद किया,
पर अपने हक़ को बेबाक आजमाया कर ।।

लोग कहते नहीं ,
कहने की क्या ज़रूरत यह इनका वहम है ।
पर तेरी हसी बड़ी ख़ास है,
तेरा खुश रहना भी अहम है ।।

मेरे जीवन में हर किरदार की अपनी एक कहानी है ।
पर तेरे औदे का नहीं कोई सानी है ।।

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