जीवन में बिन बुलाये मेहमानों को कमीं नहीं है ,
और कुछ की बेशर्मी की तो हद ही नहीं है ।

अब आलस को ही देख लो ,
इसका मुझसे अथाह प्रेम है ऐसा ,
हीर को रांझा से हुआ था जैसा ।

इसके चक्कर में डंडे खूब खाये मैंने ,
इसके कारण बिगड़ते है मुझपे सयाने ,
पर जादू बड़ा है इसकी हस्ती में ,
इसके सामने कुछ नहीं दिखता बस्ती में ।

घड़ी मुँह हमारा तकती है ,
हमारी दीवानगी पर खूब हसती है ।

कोशिश बहुत मैं करती हूँ ,
इससे बहुत लड़ती हूँ ,
पर मज़ाल जो यह हिल जाये ,
उल्टा नये रूप में मुझे रिझाये ।

कभी नींद , कभी फ़ोन ,
अनेक रूपों में सामने आ जाता है ,
इसे देख मन मेरा अटक ही जाता है ।

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